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Thursday, April 7, 2011

दुआ करो किसी दुश्मन की बद्दुआ न लगे
सन्दर्भ : अन्ना हजारे / आलेख : योगेश किसलय
ग्लोबलाइजेशन का विरोध करने वालो देख लो हम बुरे ही नहीं अच्छी बाते भी सीख रहे हैं . ट्यूनीशिया , मिस्र और लीबिया के विद्रोह ने भारत में भी दस्तक दी है . भारत में लोकतंत्र की बहाली जैसा कोई मुद्दा नहीं लेकिन लोकतंत्र की साफ़ छवि के लिए हम तरस रहे है . कई सर्वेक्षणों ने तो हमें मुह दिखाने के काबिल भी नहीं छोड़ा है जिसमे भारत को भ्रष्टतम देश बताया गया है . ऐसे लोकतंत्र का क्या फायदा जहाँ आजादी के नाम पर जंगल राज है भ्रष्टाचार करने की छूट है . जय हो अन्ना हजारे की जिन्होंने सवा अरब भारतीयों की दुखती रग को पकड़ा . सही है यह दूसरी आजादी का आन्दोलन है . इस आजादी की मुहिम ने जैसा जोर पकड़ा है उससे साफ़ जाहिर है कि भ्रष्टाचार को लेकर हम कितने बेचैन हैं . अन्ना हजारे ने इस आन्दोलन में राजनीतिक दलों को दूर रखा है यह सबसे अहम् रणनीति है . सिर्फ एक डर है कि कही अपनी उपेक्षा से बौखलाए ये राजनैतिक विधाता कोई ऐसा सर्वदलीय कदम न उठा ले जिसमे संवैधानिक और सामाजिक तौर पर हम पंगु हो जाये . जी हां मेरा इशारा इमरजेंसी जैसी अलोकतांत्रिक कदम से है . चीन में सरकार ने इन्टरनेट के सोशल नेट्वर्किंग साइट्स पर प्रतिबन्ध लगा दिया है . भारत में कही ऐसा न हो क्योंकि विरोध करने वाले विपक्ष या राजनैतिक दलों के भी हित इस आन्दोलन के कारण कुचले जा सकते हैं . अन्ना हजारे और उनके समर्थको ने राजनेताओ को बेआबरू करके लौटाया है इससे उनके अहम् फुंफकार रहे होंगे . हलाकि ज्यादा डर की बात नहीं होनी चाहिए क्योंकि अन्ना के समथन में जनसैलाब उमड़ा है उसे नकारना आसान नहीं होगा
दूसरा डर यह है कि जे पी का आन्दोलन जिस तरह बाद में विफल साबित हुआ और आन्दोलनकारी ही बाद में भ्रष्टाचार में डूबते चले गए कही अन्ना भी घाघ सिपहसालारो के फेर में न पड जाये और आन्दोलन भटक जाये . स्वामी अग्निवेश ऐसे ही निहायत ही निकट के सहयोगी है जो एक तरफ नक्सलियो के हमदर्द बनते दिखते हैं और दूसरी तरफ अन्ना की कमान भी सँभालने का नाटक कर रहे हैं .ऐसे लोगो से आन्दोलन को बचाना होगा . कुछ स्वयं सेवी संगठन या सामाजिक संगठन इस मुद्दे को दलित गरीब जाति धर्म से जोड़कर भाषण बाजी करने लगे हैं .जाहिर है आन्दोलन को बांटने की साजिश भी साथ साथ चल रही है भ्रष्टाचार ने तो अमीर गरीब ही नहीं जाति धर्म के दीवार को भी तोड़ दिया है तो इसके खिलाफ आन्दोलन में ऐसे विषयो को उठाना नाजायज ही होगा .
अन्ना ने अन्न क्या छोड़ा हजारो नहीं करोडो लोगो ने इसे हाथो हाथ लिया . जाहिर है भ्रष्टाचार से दुखी पूरा समाज था . बाबा रामदेव और कुछ और लोगो ने आवाज भी उठाया लेकिन नक्कारखाने में तूती की आवाज बन गयी . कहने में कठोर लगता है लेकिन इसकी वजह इनका मीडिया प्रेम रहा है . लोगो को लगा कि इनकी हुंकार केवल मीडिया तक ही है .अन्ना हजारे कभी मीडिया के मोहताज नहीं रहे इसलिए लोगो के दिलो तक उनकी बात पहुची तीसरा डर यह है कि जिस रफ़्तार से इस आन्दोलन ने जोर पकड़ा है उसकी रफ़्तार कबतक कायम रहेगी कहीं सरकार के लुभावने बोल से टूट न पड़ने लगे और अंजाम तक पहुचने से पहले ही आन्दोलन थक जाये .
चौथा और सबसे बड़ा डर ---- भ्रष्टाचार का गहरे जड़ तक अपनी पैठ जमा चुका है आन्दोलन से जुड़ने वाले और कुछ हद तक कुछ आन्दोलनकारी भी भ्रष्टाचार की इस व्यवस्था के बेनिफिशियारी यानि लाभुक हैं ऐसे में परोक्ष , अपरोक्ष, नैतिक , पारिवारिक और सामाजिक दबाव के आगे एक एक कर लोग किनारे न हटते जाये .
लेकिन कुल मिलाकर एक जीवट , भव्य ,विशाल और दिल से जुड़ा आन्दोलन , क्रांति या इन्कलाब शुरू हो गया है . ईश्वर से हम प्रार्थना करे कि इस जंग में हमारी जीत हो . आखिर हम मानते भी हैं कि सत्यमेव जयते !!!!!

2 comments:

  1. प्रक्रति में हर चीज़ एक नीयम से काम करती है, आन्दोलन से वृक्ष में फल आ जाते तो क्या बात थी ? बहुत आसान है नीयमों को लचीला बना कर जीवन के संघर्ष को ही ख़तम कर देना, अन्ना के "भागीरथ प्रयास " को सलाम पर तरीका नीयमों को ताक पर रखने जैसा है....

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