Total Pageviews

Sunday, April 10, 2011

अन्ना ...आखिर क्या मजबूरिया रही होगी

अन्ना ...आखिर क्या मजबूरिया रही होगी
आलेख : योगेश किसलय

सीधा सरल होना एक बात है लेकिन सीधा सरल होते हुए भी समझदार . रणनीतिकार व्यावहारिक और कूटनीतिज्ञ होना बड़ी बात . सीधा और सरल होकर आप अपनी जिंदगी शांति वे जी सकते हैं लेकिन परिवार , समाज और देश बिना रणनीति के नहीं चल सकता . अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जो युद्ध छेड़ा है उसे आगे ले जाने में सीधापन और सरलता पर्याप्त नहीं है जैसा कि अन्ना दिखते हैं या हैं . अन्ना एक निहायत ही शरीफ समाजसेवी हैं जिन्हें अबतक महाराष्ट्र में उनके आंदोलनों के लिए व्यापक समर्थन मिलता रहा है .लेकिन इस बार पूरे देश ने अन्ना का समर्थन किया . जाहिर है अन्ना का कद बढ़ा है . महात्मा गाँधी और जयप्रकाश नारायण से उनकी तुलना की जाने लगी है इसलिए अन्ना की अपनी सोच अपनी रणनीति और आन्दोलन की रूपरेखा भी अखिल भारतीय और सर्वग्राह्य संभव न हो तो बहु ग्राह्य तो होना ही चाहिए बाबा रामदेव ने ड्राफ्टिंग कमिटी को लेकर जो सवाल खड़े किये हैं वह अभी के जश्न के माहौल में अप्रासंगिक भले लगे ,भले ही इसे जीत की ख़ुशी में खलल डालने वाला माना जाये लेकिन है तो कड़वा सच . सिर्फ इसलिए नहीं कि शांति भूषण और प्रशांत भूषण बाप बेटे हैं बल्कि कई और कारण है मसलन ...
१. शांति भूषण की उम्र ---शांति भूषण जी की उम्र उनके सक्रिय होने में आड़े आ सकता है . अन्ना के अनशन स्थल से उठाते समय उन्हें कई लोगो का सहारा लेना पड़ा था .जिस तेजी या आनन फानन में ड्राफ्टिंग कमिटी को अपनी रिपोर्ट सौंपनी है उतनी भाग दौड़ शांति भूषण कर पाएंगे या नहीं यह भी संदेह से परे नहीं है
२.शांति भूषण एन डी ए की सरकार में कानून मंत्री रह चुके हैं . जिस तरह से अन्ना के अनशन स्थल पर राजनीतिज्ञों को प्रवेश करने से रोका गया और इस बात की सराहना भी हुई यह उस भावना के विपरीत जाता है .
३. अन्ना ने कहा है कि भूषण परिवार संविधान के जानकार हैं इसलिए उनका चुनाव किया गया है . यह तो बाकी संविधान विशेषज्ञों के साथ ज्यादती होगी . क्या देश में संविधान के जानकार और नहीं हैं
४. अन्ना के आन्दोलन के दौरान इस परिवार की सक्रियता भी सवालो के घेरे में है . वे जरूर भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं लेकिन अन्ना के साथ आने में उन्होंने थोड़ी देर तो कर ही दी .
५. संविधान की जानकारी रखने वाले को कमिटी में रखने का तर्क तो है लेकिन उसी संविधान को लागू कराने वाले को भी सबके सामने उपेक्षित किया गया . इशारा किरण बेदी की ओर है . किरण बेदी लगातार अन्ना के साथ आन्दोलन में जुडी रही .उनके कानून के बारे में समझ और उनकी खुद की इमानदारी भी संदेह से परे है .
६. जिस मुद्दे(वंशवाद ) को लेकर पूरा देश बीसियों साल से विवाद करता रहा है उसे अपनाना क्या मजबूरी है
बहरहाल , अन्ना की जीत का जश्न जब पूरा देश मना रहा हो ऐसे में ऐसे विषय को उठाकर माहौल में खलल दल्न३ का इरादा नहीं है लेकिन अगर जल्दी ही इस विवाद को निबटा लिया जाये तो आन्दोलन निष्पाप और बिना विवाद के चलेगा यही अपना स्वार्थ है . बाबा रामदेव को गलत न लेकर इसे सुझाव के रूप में लिया जाना चाहिए...

हकीक़त तो यह है ( शायद कठोर और विवादित भी )कि अन्ना हजारे अब तक महाराष्ट्र तक सीमित थे उनके आन्दोलन अखिल भारतीय नहीं रहे . अन्ना को अखिल भारतीय चरित्र को समझने में थोडा समय तो लगता ही . लेकिन उनके सलाहकारों ने बाबा रामदेव को लेकर जितना तीखा और अकर्मक प्रतिक्रिया किया है वह इस आन्दोलन के लिए शुभ संकेत नहीं है ..

--

No comments:

Post a Comment