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Tuesday, April 12, 2011

अन्ना बच के रहना , यह महज महाराष्ट्र नहीं

अन्ना बच के रहना , यह महज महाराष्ट्र नहीं
योगेश किसलय
अन्ना बच के रहना ... यह महाराष्ट्र नहीं , भ्रष्टाचार मिटाने के बहाने देश भर के घाघ अपनी रोटियां सेकने आ गए हैं .भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान क्या चला लोग अपने मतलब साधने लगे . कोई बताये कि भ्रष्टाचार का कोई धर्म होता है क्या ? तेलगी करे तो मुस्लिम भ्रष्टाचार , कोड़ा करे तो आदिवासी भ्रष्टाचार , राजा करे तो दलित भ्रष्टाचार या फिर शरद पवार करे तो बुर्जुआ या सामंती भ्रष्टाचार .
यह कडवी बात कहने को मजबूर इसलिए हुआ क्योंकि पत्रकारों से बात करते समय स्वामी अग्निवेश ने अन्ना हजारे के मंच को सेक्युलर मंच बताया . अन्ना ने नितीश कुमार और नरेंद्र मोदी की तारीफ क्या की बवंडर उड़ने लगा .सेक्युलर यानि धर्म निरपेक्षता के नाम पर अपना बाजार चलाने वाले हर बात पर सेक्युलरवाद खोजते हैं . वे खाते भी हैं तो भी देखते होंगे कही थाली में ढोकले तो नहीं परोस दिए गए . अगर परोस दिए गए तो यह तो गुजरात का खाना है उसी गुजरात का जिसपर मोदी शासन कर रहे है . जनाब थाली ही फेंक दे कि इससे धार्मिक कट्टरता कि बू आ रही है . नहाने गए तो कही गंगा का पानी तो नहीं ,वही गंगा जो बिहार से होकर गुजरती है और जहा नितीश कुमार मुखिया हैं . वही नितीश जिन्होंने बीजेपी के साथ सरकाaर बना रखा है . यह तो गैर धर्मनिरपेक्ष पानी होगा , बहा दो पानी को . कुछ राजनीतिक दल और कुछ एन जी ओ धर्मनिरपेक्षता की खेती खूब करते हैं और और फसल भी काटकर अपना रोजी रोटी मजे से चलाते हैं . स्वामी अग्निवेश उसी गिरोह के बहुरुपिया लगते हैं . स्वामी साधुओं का भेष, और राजनीतिज्ञों की भाषा. जब पूरा देश जाति , धर्म , वर्ग, क्षेत्र ,भाषा की परिभाषा भूलकर केवल भ्रष्टाचार से त्रस्त उन्माद में गोते लगा रहा था तभी जनाब ने मूड ही ख़राब कर दिया .
गुजरात और बिहार में विकास का रास्ता अपनाया गया है उसकी मुरीद वहां की जनता है जिन्होंने नितीश नरेन्द्र में विकास पुरुष का अक्स देखा . भ्रष्टाचार का मुद्दा पूरी तरह से विकास से जुड़ा हुआ है ऐसे में अन्ना हजारे ने विकास को मापदंड मानकर इनकी तारीफ क्या कर दी धर्मनिरपेक्षता के परचम दारो को विकास में भी धार्मिक कट्टरता की बू आने लगी . यानि अगर मोदी ने सड़के बनाई तो उसपर पता नहीं केवल मुस्लिम चलेगा या केवल हिन्दू चलेगा , केवल दलित चलेगा या गरीब चलेगा .इन बांटने वालो से सावधान रहने की जरूरत है . अन्ना बड़े वक्ता नहीं है, भोले हैं, उन्हें चापलूसों ,चमचो , मतलबी और दलालों के अखिल भारतीय चरित्र का अहसास भी नहीं है इसलिए बहुत जल्दी धोखा खा सकते हैं .
अब अन्ना से एक और आग्रह !!! अगर आप इस जीत के जश्न का संवेग बनाये नहीं रख पाएंगे तो तो अरबो लोगो को जोर का झटका धीरे से लगेगा क्योंकि लोगो को एक उम्मीद दिखी है इस रौशनी को बुझने न दे .यहाँ के लोग बहुत भुलक्कड़ हैं .हार का गम तो पल भर में भूल जाये जीत का जश्न भी अधिक समय तक याद नहीं रखते . जब तक कानून न बन जाये तब तक जन संपर्क अभियान चलाने की कृपा करे .. लोग यह भी जाने कि आखिर जिस जन लोकपाल की मांग की जा रही है वो है क्या ? गाँव के मुखिया सरपंच से लेकर प्रधानमंत्री तक इसे नहीं जान जाये तब तक प्रचार अभियान चलता रहे .
........और अंत में ... अन्ना अभी लोहा गरम है " राईट टू रिकौल " की मांग भी ठोक डालिए . देखिये ये राजनेता कैसे बिलबिलायेंगे . वह मंजर ही होगा कुछ और .शायद तब जनता हमेशा जीत की भूमिका में रहेगी और नेता सेवक की भूमिका में .

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