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Wednesday, April 6, 2011

अबलौं नसानी अब न नसैहों
पहले से ही बदनाम , अर्ध विक्षिप्त संगठन . पथभ्रष्ट सिद्धांतो के परचमदार , लाल आतंक के पर्याय और परोक्ष सत्ता के लोभी सी पी आई माओवादी ने लखीसराय बंधक कांड में फिर से अपना छिछोरापन दिखा दिया . एक हफ्ते तक उन्होंने चार जवानों का अपहरण कर जो राजनीति की वह आज के घटिया राजनीतिज्ञों से बढ़कर नीच हरकत है . राजनीतिक नौटंकी में उन्होंने जिस तरह लालू यादव को भी मात दी उससे साफ़ जाहिर है कि इस संगठन (माओवादी ) को पतित करने में झारखण्ड -- बिहार की राजनीति की कमीनगी भरे फार्मूला काम आ रहे हैं . अब दीवार से जाले उतारने छोड़ झाड़ू मकड़ी पर मारता हूँ यानि सीधे तथ्यों पर बात ..
लखीसराय बंधक प्रकरण में झारखण्ड के जवान लुकास टेटे की हत्या कर दी गयी . एक गरीब आदिवासी का घर उजाड़ दिया . फिर दरियादिली दिखाने अभय यादव के घर एक नक्सली गया हाथ में राखी बंधवाकर मानवीय संवेदना का नाटक किया और नितीश और केंद्र सरकार को गालिया देकर बचे हुए बंधको के परिवार वालो की सहानुभूति बटोरकर गर्व से सीना फुलाए जंगल में अपने बिरादरी के पास चला गया . इन कमीनो को पता था लुकास भी उन्ही चारो की तरह महज सरकारी तंत्र का नुमाइंदा है और वह ऐसे गरीब आदिवासी परिवार से आता है जिसका वास्ता देकर न केवल राजनीतिक दल बल्कि माओवादी भी अपने संघर्ष का औचित्य बताते रहते हैं .एक बार भी नक्सली संगठनो ने लुकास के प्रति संवेदना जाहिर नहीं की . अब यही से दिखाई देता है कि नक्सली इस प्रकरण में राजनीति कैसे कर रहे थे . पूरे प्रकरण में अविनाश , जो खुद को नक्सलियो का प्रवक्ता कहता था , के अलावा पूरी मीडिया और सरकार का केंद्र बिंदु अभय यादव का परिवार बना हुआ था . पहले अभय यादव की हत्या की खबर चली . अविनाश ने ही इसकी घोषणा की थी .देर रात तक चारो में से किसी को मारा नहीं गया . लेकिन जातिविहीन और वर्गसंघर्ष की वकालत करने वाले माओवादी अचानक अपनी औकात पर आ गये . उन्होंने अभय यादव के बदले लुकास को मार डाला . बिहार में चुनाव होने हैं . यादव समुदाय एक ताकतवर समुदाय है . इन्हें नाराज करना नक्सलियो के लिए भी संभव नहीं . दूसरे बंधक अहसान खान . अल्पसंख्यक समुदाय के , यादव मुस्लिम का फ़ॉर्मूला सभी राजनीतिक डालो का सपना रहा है . रमजान का महीना .. नक्सलियो की भी कूवत नहीं कि इस समुदाय से छेड़खानी करे .उन्हें याद होगा माओवादियों के खिलाफ झारखण्ड में अली सेना बनी थी जिन्होंने अपने इलाके में माओवादियों की हवा भी घुसने नहीं दी थी .चौथे बंधक रुपेश सिन्हा . अगड़ी जाति के . चुनावी माहौल में अगड़ी जातियों से पंगा लेना खतरनाक होता . बिहार के चुनाव में सबसे कमजोर हालत आदिवासी की है एक दो फीसदी की आबादी न तो नक्सलियो का न राजनीतिक दलों का कुछ उखाड़ पाती . सो ले ली जान गरीब की . शर्म की बात तो यह है कि माओवादियों ने जिन आठ कैदियों को छुड़ाने की मांग रखी थी उसमे अधिकांश आदिवासी हैं . बेशर्मो की दलील है कि नक्सली के नाम पर जिन्हें गिरफ्तार किया गया है वे गरीब आदिवासी ग्रामीण हैं इन अन्धो को दिखाई नहीं पड़ा कि उन्ही का गरीब भाई लुकास टेटे है बकरों को बचाने के लिए बकरे की ही बलि दे दी .
अब राजनीतिको की राजनीति देखिये . जब तक सर्वदलीय बैठक नहीं हुई थी रामविलास और लालू पानी पी पी कर नितीश को गालिया दे रहे थे . जब समस्या का समाधान करने की जिम्मेवारी इनपर भी आ पड़ी तो करने लगे ..मिले सुर मेरा तुम्हारा . यहाँ तक कह डाला कि हम सरकार के साथ है जाहिर है सरकार का बना फार्मूला सबसे मुफीद और विकल्पहीन था नक्सली पलटे तो .सभी दलों ने चैन की सांस ली. यादव बच गया . मुस्लिम बच गया अगड़ी बच गया, चलो अपना भी वोट बैंक बच गया .. अपनी राजनीति बच गयी ... गरीब लुकास ने जान देकर हममे जान फूंक दी .
मानवाधिकार के सरमाये दार नाम भुनाते रहे . टीवी पर बोल वचन, प्रवचन देते रहे . दरअसल इनकी रोजी रोटी तभी चलती है जब ये आतंकवादी उग्रवादी , नक्सली संगठनो की पैरवी और संवैधानिक संस्थाओ की मुखालफत करे . इनपर डंडे बरसे तो पता चले दर्द क्या होता है . मानवाधिकार के नाम पर एक वैश्विक शोषक समुदाय अपना रोजगार चला रहा है . या तो इन्हें इग्नोर करना चाहिए या इनकी दुकानदारी बंद करनी चाहिए .
.. ..और अंत में ...इस घटना से आक्रोश है क्षमा चाहूँगा ..संवेग में कुछ गालिया निकल गयी होगी लेकिन इसे मौलिक भाव समझकर समझे और गुने ..... जागो साथियो जागो !!! अब लौं नसानी अब न नासैहों ............................

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