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Sunday, January 27, 2013

विक्षोभ है , आहत है ..
यह सुनकर/ पढ़कर ,
लगता है ,कितने लाचार हैं हम , 
कभी दुनियादारी से , कभी व्यवस्था से ,
कभी कानून से ,कभी डर के उस जाल से ,
जिसके खिलाफ बगावत खुद नहीं कर पाते ,
और ,
मुह ताकते हैं कि मसीहा कहाँ पैदा हो रहा है 
जो हमें अपने से ही उपजे कुंठा से मुक्त करायेगा 
.....
फिर हम जश्न मनायेगे ..
विजया की ,
केवल उत्सवप्रेमी होकर रह गए हम .....
किसी की बलि देकर ...

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