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Saturday, May 7, 2011

झारखण्ड , तेवतिया और विस्थापितों का आन्दोलन
योगेश किसलय
झारखण्ड हो या उत्तर प्रदेश का गौतम बुद्ध नगर विस्थापन को लेकर झारखण्ड से लेकर केंद्र सरकार तक के लिए यह मुद्दा मुसीबत बन गया है . गौतम बुद्ध नगर में मनधीर सिंह तेवतिया नाम के एक शख्स का पता बताने वाले पर पचास हजार का इनाम भी रखा है पुलिस ने . पुलिस का कहना है कि तेवतिया लोगो को भड़काने का काम कर रहा था .. दरअसल विस्थापन का मुद्दा इतना संवेदनशील है कि लोग मरने मारने पर उतारू हो जाते हैं और तेवतिया और ऐसे ही कुछ गैर सरकारी संगठन मामले को सुलझाने की बजाय उलझा देते हैं क्योंकि इनका अपना स्वार्थ होता है दूसरी ओर सरकार इसका हल निकालने के लिए एक बने बनाये नियम से आगे पीछे नहीं देखना चाहती . जाहिर है पुनर्वास के प्रावधान में तबदीली चाहिए .
पहले तो यह समझना जरूरी है कि अतिक्रमणकरियो का पुनर्वास और रैयती लोगो के पुनर्वास में निहायत ही अंतर है . अतिक्रमण का मतलब ही है सरकारी, गैर मजुरुवा या दूसरे की जमीं पर गैरकानूनी कब्ज़ा . यह असंवैधानिक और अन्याय पूर्ण है जिसका किसी हाल में समर्थन नहीं किया जा सकता . इनके पुनर्वास के लिए आन्दोलन करने का यही मतलब होगा कि अराजकता को स्वीकार करना . जिसके मन में जहा आया जमीन पर कब्ज़ा जमा ली और फिर पुनर्वास के लिए हल्ला आन्दोलन करे . तर्क दिया जाता है गरीबी की वजह से लोग ऐसा करने पर उतारू हो जाते हैं . लेकिन गरीबो के लिए तो सरकार ने इंदिरा आवास जैसे कई कार्यक्रम बनाये हैं .वह सही तरीके से लागू नहीं किया जाता है तो उसे लागू कराने के लिए आन्दोलन हो . अतिक्रमण करियो को पुनर्वास देने की मांग करना अराजकता को आमंत्रण देना है . क्योंकि यह उदाहरण नियम बन जायेगा . हाँ रैयती जमीन से विस्थापन पर ज्यादा गंभीर होना होगा . इस जमीन से न केवल रैयत का जीवन , जीविका जुड़ा होता है बल्कि सैकड़ो और हजारो सालों का एक संवेदना भी जुड़ा होता है . बाप माँ ,दादा दादी और अपने पूर्वजो की यादे जुडी होती है . भौतिक रूप से रैयत का आवास और धंधा भी प्रभावित होता है . इसलिए विकास के लिए जब उसे विस्थापित किया जाता है तो विस्थापन का दर्द बढ़ता है . विकास का कोई विकल्प नहीं है इसलिए कई बार न चाहते हुए भी विस्थापित होना पड़ता है इसके लिए सरकार को एक नियम की तरह नहीं बल्कि संवेदनशील व्यक्ति की तरह बर्ताव करना पड़ेगा .जिस जमीन पर रैयत की मिलकियत है उससे बेहतर या मिलता जुलता विकल्प नहीं होने पर असंतोष की चिंगारी उठेगी जिसे तेवतिया और ऐसे ही संगठन आग में बदल सकते हैं . इसलिए विस्थापन नीति की समीक्षा होनी चाहिए और सरकार सीधे जमीन मालिक से संवाद करे वरना देश में नेता बनने की चाहत रखने वालो की कमी नहीं .अव्वल तो यह कि विस्थापित की परिभाषा ही बदलनी चाहिए और जो अतिक्रमणकारी खुद को विस्थापित कहता है उसपर चार सौ बीसी सहित आपराधिक मामला दर्ज होना चाहिए .
विस्थापन का विरोध कितना जायज है ,
गौतम बुद्ध नगर में एक्सप्रेस वे का निर्माण हो रहा है , सड़क देश के विकास का जीवन रेखा है, इसे कैसे नकार दिया जा सकता है . झारखण्ड का सवाल है तो कोयल कारो हो या नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज या चतरा फील्ड फायरिंग रेंज ,यह सुरक्षा और विकास के के लिए एक जरूरी चीज है . .कोयल कारो अगर बनता तो राज्य के हर गाँव को बिजली मिल सकती थी .विस्थापितों को रोजगार के मौके मिलते , नेतरहाट और चतरा के जंगलो में अब आम आदमी नहीं जा सकता क्योंकि वहां नक्सलियो का राज है . अगर सेना का फील्ड फायरिंग रेंज बनता तो वहा की जनता शायद अधिक शांति से रहती और राज्य के बाकी हिस्सों से कटी नहीं रहती .
एक प्रसंग याद आता है -- सन १९८८ -८९ में देशभर के पत्रकारों का रांची में जमावड़ा हुआ था एक सम्मलेन के सिलसिले में . गुजरात के पत्रकारों ने खास तौर पर आग्रह किया कि नर्मदा बचाओ आन्दोलन विकास विरोधी आन्दोलन हैं और इसका विरोध देशव्यापी होना चाहिए वरना गुजरात और देश विकास में पिछड़ जायेगा . हम पत्रकार हैं लेकिन पहले देश की सोचना चाहिए . आज हम देख रहे हैं विकास के जिस मुकाम पर गुजरात है वहा विकास के लिए मोदी मंदिर तक तोड़ते हैं और कोई हंगामा नहीं होता लोग आगे बढ़कर अपनी जमीन दे रहे हैं ताकि कोई निवेश करने आये . झारखण्ड के मजदूर से प्रोफेशनल और व्यापारी कमाने खाने गुजरात जा रहे हैं .इसलिए विकास का कोई विकल्प नहीं है .हाँ विकास के नाम पर विस्थापन और पुनर्वास का कोई तर्कसंगत हल खोजना होगा
लेकिन क्या विस्थापन के नाम पर तेवतिया और ऐसे ही संगठनो से देश और राज्य को निजात मिल सकता है ?????????

4 comments:

  1. Kislay ji aapke is sarahniya prayas ke liye mai aapko dhanyawad deta hu.
    Abhi ki pristhiti me is mudde ko vishthapit kahana kaha tak mukkamal hai sabse pahle to use hi hum sabo ke liye vicharniya hai.
    Uske bad hi is mudde par kuch bhi aandolan ya sarkar ka virodh hona chahiye.
    Sarwapratham vishthapit ko hi paribhasit karna hoga.
    Jitne log utni hi paribhasha samne aayegi.
    Satta paksh ka najariya kuch aur to vipakash ka najariya bilkul hi viprit hoga.
    Vipkash ko apni jimmedari wali bhumika nibhani chahiye....


    DEEPAK LOHIA
    RANCHI

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  2. Kislay jee,
    aapka lekh poorntaya satya ko darshata hai. sasti lokapriyata ke liye netaon dwara andolanon ka dikhawa, aur kuch "arm chair intellectuals" ke magarmachchhi ansuon ne is mudde ko vibhrant kiya hai.
    atikraman mudde ko kisi bhi prakaar se jayaj nahi tahraya ja sakta. kanoon amir ho ya garib sabhi ke liye samaan ho.

    Sanjay Bose,
    Ranchi

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  3. magar kya atikraman ko yeh legalise karna nahin hoga,ki aap sarkari jameen encroach kar lijiye aur jab aapko hataya jaye to punarvash ki maang kijiye....ye mere jharkhand ke sandarbh mein vichar hai kyonki abhi abhi marandi ji ne ansan rakha isi punarvas ke maang par

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  4. शब्द निरंतर जी , मेरा यह आलेख भी झारखण्ड के ही सन्दर्भ में था , मेरा मानना है कि किसी हाल में अतिक्रमण कारियों को विस्थापित की श्रेणी में नहीं रखना चाहिए वरना अराजकता हो जाएगी . और बाबूलाल मरांडी का अनशन तो दो सौ फीसदी राजनीतिक था ...

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