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Tuesday, July 12, 2011

झारखंडी आजादी का यह नया आयाम तो नहीं ??


मुझे याद है झारखण्ड बनने से पहले एक नारा दिया गया था .--- " कैसे लोगे झारखण्ड " जवाब में उदघोष होता था .." लड़ के लेंगे झारखण्ड " .अलग राज्य के लिए यह उन्मादी जुनून देखकर लगता था कि अपने राज्य से , राज्य के नागरिको और यहाँ की समृद्धि से इन लड़ाको का इतने इंटेंसिव ( सघन गहराई तक) लगाव है कि भ्रष्टाचार , अन्याय ,बेरोजगारी जैसी विडंबनाओ के खिलाफ एक सामूहिक ,सतर्क और स्वच्छ व्यवस्था कायम होगी . लेकिन महज दस सालों में हमने नैतिकता के ऐसे गिरते प्रतिमान स्थापित किये हैं कि जिस झारखंडी अस्मिता की कसमे खाई जाती थी वही अस्मिता मजाक बनकर रह गया है जिस झारखण्ड को लड़कर लिया था उसे लूटने के लिए आपस में ही लड़ाई हो रही है सत्ता का मद ऐसा होता है कि जुनून को भी ठंडा कर दे . आज वैश्विक स्तर पर युवा पीढ़ी को सबसे ताकतवर ,पोटेंशियल और व्यवस्था परिवर्तन का सूत्रधार माना गया है . लेकिन दुख इस बात का है कि झारखण्ड की सत्ता में अस्सी फीसदी से अधिक युवाओ ने सत्ता पर कब्ज़ा रखा और उसके ही अस्सी फीसदी सत्ताधीश भ्रष्ट और गैर चरित्रवान निकले जिसकी वजह से झारखण्ड की यह दुर्दशा बनी हुई है. ऐसे में आशा की एक भी किरण दिखती है तो झारखंडी लोग ऐसे उत्साहित होते हैं जैसे अंधे के हाथ में बटेर लग गया हो . डॉ अजय कुमार की जीत हमें यह साबित करने का मौका देती है कि यहाँ के लोगो का राजनीति, राजनीतिज्ञों और सत्ता के नजदीक रहने वालो से मोहभंग हो गया है . ग्यारह साल ...पता नहीं कितने सरकार और पता नहीं कितने मंत्री... सब के सब झूठे, मौकापरस्त , और निजी हितो में मशगूल . और उनका दंभ ऐसा जैसे देश या विश्व के शासक हो , विधाता हो . जनता को उन्होंने निरीह नौकर समझ लिया है .बिना किसी शैक्षिक ,राजनैतिक और सामाजिक योग्यता के सत्ता के अहम् पदों पर कायम होने से मदान्धता तो आएगी ही .और इसे झेलने को विवश रहे हैं झारखण्ड के उम्मीद पसंद नागरिक . ऐसी हालत में अजय कुमार जैसे लोग सत्ता के बदबूदार माहौल में ठंडी और खुशबू भरी बयार बनकर आये हैं . डॉ अजय की जीत किसी राजनैतिक दल की जीत नहीं है बल्कि झारखण्ड के लोगो के दुआओ और उम्मीदों की जीत है . डॉ अजय कुमार ने दूसरो दलों से भी चुनाव लड़ने के लिए संपर्क साधा था . यह तो बाबूलाल मरांडी की किस्मत की बात रही कि डॉ अजय को झारखण्ड विकास मोर्चा में ठौर मिला . अब मरांडी और अजय कुमार बिना इतराए, बिना अगराए उन उम्मीदों पर काम करे जिसके लिए डॉ अजय कुमार जाने जाते हैं . अजय कुमार को लेकर डर इस बात का है कि बेहतर काम करने के बावजूद उन्हीने किसी एक व्यवस्था में टिक कर काम करने का दम नहीं दिखाया . सफल ,कड़क और इमानदार पुलिस अधिकारी के रूप में उन्हीने ऊँचाइयाँ छुई ही थी कि अचानक कोर्पोरेट व्यवस्था को सँभालने चले गए . वहा भी शीर्ष स्थान पर जाते ही उसे छोड़कर दूसरी जगह चले गए . अब राजनीति में आये हैं तो यहाँ की अव्यवस्था से उनका मोहभंग जल्दी न हो जाये . इसीलिए हम कामना करे कि इस प्लेटफोर्म पर डॉ अजय कुछ सालों तक टिके..गन्दगी को वे साफ़ करे या न करे खुद गन्दगी से ऊपर उठकर एक मिसाल कायम करे .
अलग राज्य के अधिकांश आन्दोलन कारी अभी हाशिये में हैं . अब उन्हें कोई भाव नहीं देता इसकी वजह सिर्फ यही है कि कुछ आन्दोलनकारी सत्ता में आये तो वे लूट खसोट का हिस्सा बन गए और उनकी ही वजह से बाकियों के प्रति जो सद्भाव और सहानुभूति होनी चाहिए थी उससे वे महरूम हो गए है . देश को दूसरी आजादी दिलाने का नारा अन्ना हजारे की टीम ने दिया है . हम उम्मीद करे कि झारखण्ड को भी भ्रष्ट और अव्यवस्थित तंत्र से आजादी के लिए ऐसा ही कोई अन्ना जरूर आयेगा . डॉ अजय से हम शुरुआत कर सकते हैं क्या ????






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