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Thursday, October 13, 2011

इन्हें अब अप्रासंगिक मान लेना चाहिए

इन्हें अब अप्रासंगिक मान लेना चाहिए
टीम अन्ना के सदस्य प्रशांत भूषण की पिटाई की भले सार्वजनिक निंदा हो रही हो लेकिन व्यक्तिगत तौर पर बहुत से लोग हैं जो ऐसे विचारधारा वालो के इस हश्र को जायज और तार्किक भी मानते हैं . रही बात सरकार या संस्थागत स्तर पर तो प्रशांत भूषण जैसे लोगो पर कोई कार्रवाई नहीं करके अभिव्यक्ति के नाम पर अलगाव वाद को बढ़ावा देने वाला ही कहा जा रहा है . प्रशांत भूषण की पिटाई भले गलत हो लेकिन उनके बयान सही कैसे हैं .? संभव है , कुछ एक्टिविस्ट , विदेशी पैसे पर चल रहे एन जी ओ , मानवाधिकार से सम्बंधित संगठन , और तथाकथित क्रन्तिकारी विचारो वाले सज्जन इसे फासीवाद कहे , कट्टरता कहे , बुर्जुआ सोच कहे ,साम्राज्यवादी विचारक कहे लेकिन इस तरह के ' कोकस ' या इनकी गिरोहबंदी अब छुपी बात नहीं है जो इन मुद्दों पर बड़े मुखर होकर वैचारिक क्रांति का खुद को झंडाबरदार घोषित करते रहते हैं .
कुछ उदाहरण प्रासंगिक हैं ....जब अंग्रेज देश छोड़ कर जा रहे थे तब सत्ता हस्तांतरण के दौरान हर सूबे ,हर क्षेत्र , हर राजा राजवाडा के शासित प्रदेश का बाकायदा विलय कराकर भारत राष्ट्र को निरूपित किया गया था . लेकिन झारखण्ड के कुछ प्रशांत भूषण मानसिकता के तीन चार लोगो ने दावा किया कि झारखण्ड के कोल्हान इलाके का विलय भारत देश में हुआ ही नहीं इसलिए उसे स्वतंत्र राष्ट्र घोषित किया जाये . कोल्हान देश के नाम से कृष्ण चन्द्र हेम्ब्रम और सी ए टोपनो सहित कुछ लोगो ने आन्दोलन भी शुरू कर दिया कि कोल्हान एक स्वतंत्र राष्ट्र है जिसे भारत के संविधान के पालन की जरूरत नहीं है और इसे मुक्त किया जाये . कोल्हान देश की मांग के खिलाफ जनता को कुछ नहीं करना पड़ा सरकार ने ही इनपर देशद्रोह का मुकदमा किया और इन अलगाव वादी नेताओ को माफ़ी मांगनी पड़ी . दूसरा उदाहरण सबको मालूम है .पंजाब में खालिस्तान की मांग उठी और खालिस्तान समर्थको को देशद्रोही और आतंकवादी माना गया . ऐसे में आखिर क्या मजबूरी है कि न तो सरकार न ये कथित बुद्धिजीवी और मानवाधिकार के परचमदार कश्मीर को स्वतंत्र करने की मांग करने वालो को देशद्रोही या आतंकवादी मानते हैं . उनके जनमत सर्वेक्षण के तर्क कितना घटिया है इसके भी उदाहरण देखिये . झारखण्ड के ही एक गाँव ने सरकारी अकर्मण्यता , उपेक्षा से तंग आकर कह दिया कि चुनाव का बहिष्कार करेंगे और हम नहीं मानेंगे कि देश और राज्य में कोई सरकार है नब्बे फीसदी से अधिक लोगो ने वोट नहीं डाले . अगर उस गाँव में अरूंधती राय जैसे जनमत सर्वेक्षण की वकालत करने वाले लोग नेतृत्व कर रहे होते और जनमत के आधार पर अलग देश की मांग कर दिया होता तो प्रशांत भूषण जैसे लोग वहा भी खड़े रहते क्या ? धर्म के नाम पर तो देश का बटवारा हो गया अब जाति के नाम पर ,क्षेत्र के नाम पर , समुदाय के नाम पर वर्ण के नाम पर परिवार के नाम पर भी देश को बाँटने की साजिश चल रही है . अभिव्यक्ति के नाम पर मनमर्जी बोलने की इजाजत इन्हें मिलनी चाहिए यह सही है तो अभिव्यक्ति के नाम पर आदिवासी , गैर आदिवासी , दलित पिछड़ा अगड़ा जैसो का अलग अलग देश की मांग को भी जायज ठहराना चाहिए . देश ऐसे ही चलेगा क्या ?
प्रशांत भूषण के पिताजी शांति भूषण दावा करते हैं कि उनके पूर्वज स्वाधीनता सेनानी रहे हैं , क्या अपने पूर्वजो की कमाई को , कर्मो को ,उपलब्धि को वे ऐसे ही तुच्छ लोभ में जाया करेंगे ? अपने पूर्वजो पर गर्व नहीं कर पाने वालो से क्या उम्मीद लगाया जा सकता है . प्रशांत भूषण अन्ना की सवारी करके अपने सभी पाप धो रहे रहे थे लेकिन पाप है कि उभर ही आता है . अगर मीरवायज, यासीन मालिक को हम खुले तौर पर अलगाववादी कश्मीरी नेता कह सकते हैं और कई बार इनपर प्रतिबन्ध लगाये जा चुके हैं तो प्रशांत भूषण और अरूंधती जैसे लोगो को अलगाव वादी भारतीय नेता क्यों न कहा जाये और इनपर भी हेम्ब्रम और टोपनो की तरह राष्ट्र द्रोह का मुकदमा क्यों न चलाया जाये ?
अब एक और मुद्दा ...कश्मीर या पूर्वोत्तर राज्यों में आर्म्ड फाॅर्स को मिले विशेष अधिकार को ख़त्म करने और सेना को वापस बुलाने की मांग भी उठ रही है प्रशांत भूषण ने भी आवाज दे दी है .चानू शर्मीला के अनशन का भी हवाला दिया जा रहा है . सेना इन इलाको में घुसपैठियों और विदेशी सेना से किस तरह मुकाबला कर रही है इसपर किसी ने सोचा है . झारखण्ड आइये जब हर महीने कश्मीर या पूर्वोत्तर से शहीदों के शव आते रहते हैं जो बिना किसी घोषित युद्ध के युद्ध कर रहे हैं . इन्हें अधिक अधिकार नहीं दिए गए तो ये पंगु हो जायेंगे . संभव है इन विशेष अधिकारों के अमल में लाने के दौरान कुछ ज्यादतिय भी हुई होगी लेकिन इसके लिए कानून नहीं बल्कि पालन करने वाले जिम्मेवार हैं उन्हें सजा मिलनी चाहिए लेकिन कानून को ही ख़त्म करने की मांग निहायत ही अतार्किक और अव्यवहारिक है . कल यह भी कहा जाने लगेगा कि सेना का अस्तित्व ही ख़त्म कर दो , सेना क्या पुलिस भी अत्याचार करती है ये संस्था ही ख़त्म कर दिए जाये , सच पूछिए तो प्रशांत भूषण और अरूंधती जैसे लोग विघ्न संतोषी हैं और पूरी व्यवस्था के ही तोड़क तत्व हैं . मर पीट से नहीं लेकिन सामाजिक बहिष्कार कर इन्हें निर्गुण और अप्रासंगिक बनाया जाये ...!!!
आलेख ---योगेश किसलय

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