Total Pageviews

Thursday, September 18, 2014

गाँधी को लोप करते उनके ही वाशिंदे

                                      गाँधी को लोप करते उनके ही वाशिंदे              
           गाँधी जयंती के बाद गाँधी की चर्चा किया जाना शायद अप्रासंगिक लगे लेकिन यह चर्चा पहले करना मुनासिब इसलिए नहीं लगा क्योंकि गाँधी के कुछ अंध भक्त , गाँधी के नाम को ब्रांड की तरह इस्तेमाल करने वाले कुछ राजनीतिक संगठन, गाँधी के सिद्धांतो को अपरिवर्तनशील ,जड़ तथा अप्रगतिशील समझनेवाले बुद्धिजीवी और गाँधी के नाम पर अपना बाजार चला रहे एन जी ओ गाँधी जयंती के मौके पर बने माहौल में उन्मत्त और बौखलाकर बिफर पड़ते . फिर उनके अतार्किक बातो और पूर्वाग्रह से ग्रस्त तकरीरो का  एक साथ जवाब देना मुश्किल होता .यह वर्ग दरअसल गाँधी जी के बारे में कुछ स्थापित आदर्शो के अलावा कुछ सुनने को तैयार भी नहीं होता है क्योंकि गाँधी के नाम को लेकर वे लाभुको की श्रेणी में आते हैं .  
              गांधीजी को उनके ही लोग मार्क्स ,माओ , लेनिन जैसे विचारको की श्रेणी में लाने को बेकरार हैं . इन वाम विचारको के सिद्धांतो को जड़ बनाकर रखा गया इसलिए रूस का बिखराव हुआ , चीन ने माओ और लेनिन के सिद्धांतो को ताक पर रख दिया है तभी विकास की दौड़ में वह अमेरिका जैसे देशो को पानी पिला रहा है . उन्हें लगा कि इन विचारो का सार्वजनीन , सार्वभौमिक और सर्वकालिक अहमियत तभी है जब उन सिद्धांतो में ठहराव न हो ,लोच हो और देश काल पात्र के अनुसार ग्राह्य हो .गाँधी के विरासत तुषार गाँधी अकेले नहीं हो सकते ,लेकिन मंचो पर और टीवी चैनलों में जिस तरह गांधीजी को आम आदमी से दूर बताते फिर रहे हैं वह गाँधी जी की उनके ही सिद्धांत  अश्पृश्यता के विरोध  के खिलाफ है . महाबीर और बुद्ध ने परम अहिंसा के सिद्धांतो की स्थापना की थी ,गांधीजी ने जरूरत के मुताबिक उसे ही आगे बढाया . क्या साठ सालों के बाद भी अहिंसा के वहीसिद्धांत हु ब हु प्रासंगिक हैं ? अन्ना हजारे ने अहिंसा के उन्ही सिद्धांतो पर थोडा बदलाव करते हुए अनशन किया तो बहुत से लोग बिफर गए ...गाँधी से अन्ना की तुलना न हो , अन्ना का आन्दोलन गलत है , वगैरह वगैरह ..  गाँधी के विचारो पर विचार क्या करिए कि तलवारे तान लेते हैं उनके अनुयायी . गाँधी का अहिंसा क्या यही है ?
             कोई भी मनुष्य पूर्ण नहीं होता है . गाँधी जी भी मर्यादा पुरुषोत्तम नहीं थे इसलिए समग्रता में उनसे भी तमाम गलतिय हुई होंगी , नाथूराम गोडसे से लेकर ओशो रजनीश  तक ने समझाने  कोशिश की कि गाँधी को हमारे बीच  का ही इन्सान बनकर रहने दो . गोडसे बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसने जघन्य फैसला ले लिया . गोडसे के साहित्य में कही उसकी स्वीकारोक्ति भी लिखी है . गोडसे ने कहा कि वह गांधीजी की बड़ी इज्जत करता था लेकिन गांधीजी की  जिद और हठधर्मी ने सैकड़ो लोगो को अपने विचारो को कुचलने को बाध्य होना पड़ा .गाँधी अड़े थे कि मेरी बात मानो नहीं तो मै जान दे दूंगा .लोग गाँधी से बेपनाह प्यार करते थे  लोगो  ने उनकी बात मानी लेकिन गोडसे को बर्दाश्त नहीं हुआ कि गाँधी मनमानी करे .........
             आज गांधीजी के विचारो को उनके सिद्धांतो को उनके लोग उनके अनुयायी और गाँधीवादी लोग तथा संगठन उतना ही जड़ , अप्रगतिशील और इसी वजह से अव्यवहारिक बनाने पर तुले हैं . कोई भी परंपरा ,नियम और रिवाज सर्व व्यापी नहीं होता .देश, काल और पात्र के हिसाब से वह बदलता और संशोधित होता रहता है  इसे खुले दिल से स्वीकार करना होगा तभी गांधीजी के सिद्धांत काल जयी और पासंगिक बने रह सकते हैं . खुद गांधीजी भी अपने बर्ताव में परिवर्तन लाते रहे जो जरूरत के हिसाब से अनुकूल थे .गांधीजी के जीवन के उन अध्यायों की हम चर्चा ही नहीं करते , उन विषयो पर हम मंथन ही नहीं करते या उन संदर्भो की ओर देखना ही नहीं चाहते जो गाँधी जी को पूर्णता देते हैं .अगर गांधीजी के मानवीय पहलुओ पर हम चर्चा करने को तैयार हो गांधीजी एक पारदर्शी व्यक्तित्व के रूप में उभरेंगे वरना गांधीजी के कई पहलू संदेह और विकार ही  पैदा करेंगे . प्रसंगवश यह ध्यातव्य है कि अगर हिन्दुओ के देवताओ की चर्चा होती है तो भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम तो कहा जाता है लेकिन कृष्ण को सम्पूर्ण व्यक्तित्व का प्रतीक कहा जाता है . कृष्ण ने जरूरत पड़ी तो लड़ाई भी लड़ी , चोरी भी की ,दुसरो का उपहास भी उड़ाया लेकिन समग्रता में उन्हें हर कला का माहिर माना गया  आज गांधीजी को लेकर यही समस्या है कि हम उनके सिद्धांतो को लेकर लकीर के फ़कीर की तरह बन गए हैं . गांधीजी को हमने  लोगो से इतना ऊपर बैठा दिया हैं कि लगता है कि उनके नियम और सिद्धांत का  पालन बिना सन्यस्त हुए किया नहीं जा सकता . इसलिए गाँधी हमसे दूर होते जा रहे हैं

No comments:

Post a Comment