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Thursday, September 18, 2014

इतने भी बेशर्म नहीं बनिए जनाब / हमें पता है हकीक़त


इतने भी बेशर्म नहीं बनिए जनाब / हमें पता है हकीक़त 

   अकिलुर रहमान को पचीस साल से तो जानता ही हूँ , पहले सोचता था यह बन्दा बहुत अधिक महत्वाकांक्षी नहीं है , या तो शगल वश या छोटे मोटे  रोजगार के लिए राजनीति  करता है . लेकिन अचानक सिटी पैलेस से बरामद बाईस लाख रूपये पर उन्होंने अपना दावा पेश किया तो लगा कि इतने बेशर्म होकर राजनीति करने से तो बेहतर है चौराहे पर तेल बेचे . कानून और लोकतंत्र की जिस तरह ऐसी की तैसी की जा रही है उससे तो बेहतर है कि वोट ही न डाला जाये या नक्सलियो की तरह वोट का सक्रिय रूप से बहिष्कार किया जाये . 
 इतनी बेशर्मी से मामले को लेना किसी पार्टी के लिए हिम्मत की बात होगी . कांग्रेस ने जता दिया की उनके लिए कानून से बचने का रास्ता पखाने की टंकी से भी होकर जाये तो वह परिहार्य है . राज्य में परोक्ष रूप से उनका ही शासन है , जाहिर है ब्यूरोक्रेट भी उनके ही खादिम होंगे . सिटी पैलेस में बाईस लाख रूपये की सच्चाई जब अधिकारियो से निगली नहीं जा सकी होगी तभी उसे इतना गंभीर मामला बनाया गया जिसकी हद में पूर्व मेयर से लेकर सुबोधकांत सहाय और शर्मा साहू जैसी छोटी मछलियाँ फंसी . मीडिया वालो के दनदनाते चमकते कैमरों के बीच कोई भी अधिकारी देखकर मक्खी नहीं निगल सकता था , इसलिए प्राथमिकी में कड़ी कड़ी बातें लिखी गयी . शर्मा साहू तो जेल चले गए पर बाकी के सर पर तलवार लटक गयी है . पांच दिनों के बाद इस चुनावी सरगर्मी से निहायत ही अलग रहे अकिल सामने आ गए . अकिल की अकल मारी गयी या अक्ल पर अपने राजनैतिक विधाताओं की सुरक्षा भारी पड़ी कि अकिलुर रहमान ने पुलिस , आयकर विभाग , चुनाव आयोग , कांग्रेस पार्टी के विरोधी धड़े और तमाम नैतिक मानदंडो को लात मरकर पैसे पर अपना दावा पेश कर दिया .
 अकिलुर रहमान की इतनी औकात हो गयी कि पार्षद चुनाव में अकेले बाईस लाख रूपये चंदा करके जुगाड़ कर ले तो उन्हें सांसद का चुनाव लड़ा देना चाहिए . हारे या जीते उससे मतलब नहीं सौ दो सौ करोड़ रूपये तो वे चंदे से ही उगाही कर लेंगे . 
 यह मामला इतना आसान नहीं है जनाब ! बेशर्मी ही दिखानी हो तो अलग बात . वरना ये अकिलुर रहमान बताएँगे कि उन्ही की पार्टी के दो सदस्य शर्मा और साहू ने जो बयां दिया है वह गलत है ?. इतना पैसा एक होटल में किसके भरोसे छोड़ के छः दिनों तक अन्तः पुर में सोये पड़े थे अकिल . किससे किससे पैसे लिए थे इसकी रसीद तो शायद अकिलुर रहमान काटना शुरू कर दिए होंगे लेकिन उनके ही अध्यक्ष कह रहे हैं कि पार्टी ने कोई चंदा नहीं मांगा  है . इतना सारा पैसा जहाँ रखा गया था वहाँ कांग्रेस के बाकी लोग तो थे लेकिन चंदे के सरताज अकिलुर रहमान वहां  नहीं थे ...सवाल तो तमाम हैं . थोडा भी जागरूक व्यक्ति समझ सकता है कि पूरे प्रकरण में अकिलुर रहमान के अचानक अवतरण जाच को बाधित करना और खादिम का खिदमत करने का कर्तव्य निर्वहन करना भर है . देश के कानून , देश की अदालत , चुनाव आयोग , चुनाव प्रक्रिया , मतदाता , आम जनता , पुलिस प्रशासन पर थोडा बहुटी  ही सही लोगो को भरोसा  और विश्वास है , उसके साथ खिलवाड़ करना कितना गलत है .
  निकाय चुनाव में मैंने वोट नहीं डाला , इसे लेकर तीस साल पुराने साथी ने मुझे फेसबुक पर सार्वजानिक गली गलौज की , मैंने भी गुस्से में उनसे बात करना बंद कर दिया है . जिस देश में लोकतंत्र के इस प्रक्रिया के लिए इतना गहरा लगाव और संवेदना हो वहां नेताओं की ऐसी चिरकुटई बर्दाश्त से बाहर की चीज है . क्या हम इन नेताओं के खिलाफ बन्दूक नहीं थाम ले ? या फिर पुलिस ही उनके छाती पर बन्दूक नहीं तान दे ?
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