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Thursday, September 18, 2014

कसाब को फांसी ! चोरी चोरी , चुपके चुपके क्यों


कसाब को फांसी !  चोरी चोरी , चुपके चुपके क्यों ?

    सुबह सुबह खुशखबरी मिलना पूरे दिन के लिए सुखदायक होता है . खुशखबरी अगर राष्ट्रव्यापी हो तो और भी बेहतर . आमिर अजमल कसाब को फांसी दिए जाने की खबर से लोग झूम उठे सिवाय मानवाधिकार के परचमदारो के . जिनकी आड़ में राष्ट्रविरोधी तत्व इस फांसी को गलत बता सके . यह अप्रत्याशित ख़ुशी सामूहिक उत्सव में भी तब्दील हो सकता था अगर कसाब की फांसी की सजा को सार्वजानिक तारीख तय करके अमल में लाया जाता . चुपके चुपके चोरी चोरी जो किया गया भले सही है लेकिन इसके कारण जैसा जश्न देश के लोग मनाने की फ़िराक में थे उससे महरूम हो गए . 
  लेकिन तीन वजहें ऐसी हैं जिसके कारण केंद्र सरकार  ने आनन् फानन में इसे अमली जमा पहनाया . सबसे पहली बात ..26/11 के इस एकलौते जिन्दा पकडे गए आरोपी को लेकर पूरे देश में गुस्सा था . न्यायिक प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी .राष्ट्रपति ने भी दया याचिका ख़ारिज कर दी थी . ऐसे में इसपर देरी करने का कोई ख़ास कारण दिख नहीं रहा था . 26/11 के ठीक चार दिन पहले फांसी देकर सरकार फिर से लोगो में उमड़ने वाले गुस्से को झेलना नहीं चाहती थी . जाहिर सी बात है की 26 /11 की बरसी पर लोग फिर एक बार कसाब की फांसी में हो रही देरी के लिए केंद्र सरकार को लताड़ते .घोटाले और आर्थिक नाकामियों को झेल रही सरकार इस प्रहार को झेलना नहीं चाहती थी वरना अफजल गुरु को पहले फांसी की बारी रहते हुए कसाब को कैसे पहले फांसी दी गयी . अफजल को लेकर देश में  एक वर्ग के लोग बंटे हुए है और अफजल को फांसी देने का विरोध कर रहे हैं . सरकार इस विवाद से बचते हुए कसाब को फांसी देकर सारा क्रेडिट लेने की कोशिश कर रही है . यह भी संभव है कि कसाब की फांसी को लेकर उसके वकील कोई कानूनी पक्ष का हवाला देकर फिर से फांसी की सजा को रोकने की अर्जी न दे देते और उसके कारण यह फांसी कुछ दिन और टल जाती . 
     दूसरी वजह , इसे गौर से समझिये ..तीन दिन पहले संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव आया है जिसमे फांसी की सजा को ख़तम करने का प्रस्ताव है .प्रस्ताव का ड्राफ्ट पिछले महीने ही तैयार हुआ था जबकि राष्ट्रपति ने 5 नवम्बर को दया याचिका ठुकराया था और आठ नवम्बर को फांसी की सजा की तारीख  तय की गयी थी . इस प्रस्ताव के समर्थन में 110 देशो ने हामी भरी है जबकि लगभग 40 देशो ने इसका विरोध किया है ,  चालीस देशो में भारत भी है जिसने फांसी की सजा पर रोक लगाये जाने का विरोध किया है कुछ देशो ने अपनी राय अभी तक नहीं दी है , अगर संयुक्त राष्ट्र में फांसी पर रोक का प्रस्ताव मंजूर हो जाता है तो संयुक्त राष्ट्र का सदस्य होने के नाते इसपर अमल करना होगा और सभी न्यायिक अवरोध पार कर फांसी की सजा पा चुके कसाब को इससे मुक्ति पा  जाना देश के लिए शर्मनाक होता . सरकार ने इसलिए आनन् फानन में ऐसा फैसला लिया है . अगर यह प्रचारित हो जाता तो संभव है कि संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश इसे मुद्दा बनाते .ऐसे अंतरराष्ट्रीय दुविधा में फंसने के बजाय सरकार ने सारा क्रेडिट खुद लेने की पहल की . 
   तीसरा कारण गुजरात चुनाव है . शिव सेना प्रमुख बाला साहब ठाकरे के निधन के बाद नरेंद्र मोदी को हिंदुत्व का सबसे बड़ा सरमायादार माना जाने लगा है . गुजरात का चुनाव केवल गुजरात नहीं बल्कि देश के अगले आम चुनाव का रास्ता बनाएगा . मोदी अगर जीतते हैं तो कांग्रेस के लिए वे सबसे बड़ी चुनौती होंगे . कसाब को लेकर उनकी टिप्पणिया कांग्रेस को हमेशा से शर्मिंदा करती रही है . अगर प्रचार करके कसाब को फांसी दी जाती तो मोदी और बीजेपी इसका श्रेय या तो खुद लेते या जनता के दबाव में लिया गया फैसला कहकर कांग्रेस के हाथो से यह क्रेडिट छीन लेते . 
  बहरहाल कसाब को फांसी मिल गयी लेकिन सवाल भी कई खड़े हो गए हैं . अफजल गुरु को लेकर सरकार का क्या रवैया होगा ? कहीं कसाब को फांसी देने से पाकिस्तान में बंद सरबजीत की रिहाई का मामला तो नहीं उलझ जायेगा . मानवाधिकार संगठनों के हाँव हाँव का जवाब कैसे दिया जायेगा 

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