जो तटस्थ है देना होगा उनको भी जवाब
सन्दर्भ : म्यामार पर रांची में आतंक
यह महज संयोग है कि रांची में जिस समय सड़को पर म्यांमार के मुद्दे पर आतंक मचाया जा रहा था ठीक उसी समय अमृतसर और दिल्ली में पाकिस्तान से दो सौ हिन्दू परिवार भागकर शरण लेने के लिए भारत पहुचे थे . बराबर की टीस दोनों तरफ थी लेकिन अधिक कसक तो पकिस्तान से आये शर्णार्थियो के लिए होगी क्योंकि पैंसठ साल पहले पकिस्तान और भारत एक ही थे . खून का सम्बन्ध है , ऐसे में पाकिस्तानी शरणार्थियो के प्रति दर्द होना स्वाभाविक ही नहीं लाजिमी भी है . यह दर्द सड़क पर नहीं उतरा दिलो में ही लोगो ने जज्बे को जब्त कर लिया . लेकिन म्यांमार से हमारा कोई सीधा संबंद नहीं है . वहां मौजूद रोहिंग्या मुसलमान आखिर कैसे मुसलमान हैं अधिक लोगो को पता तक नहीं . लेकिन उत्पात मचाना हो तो धर्म का हौव्वा खड़ा कर दो . जिस म्यांमार को लेकर रांची की सडको पर हंगामा हुआ उस म्यांमार की स्थिति जानना जरुरी है
म्यामार में जुन महीने से ही आपातकाल लागू है , मिलिट्री का शासन है , म्यामार में बौद्ध धर्मावलम्बियों का बहुमत है . बौद्ध एक ऐसा समुदाय है जिसके धर्म में शुरुआत होती है अहिंसा से और अंत होता है अहिंसा से . शायद जैनियों के बाद सबसे अहिंसक समुदाय बौद्ध को माना जाता है . वहां चल रहे जातीय हिंसा का कारण क्या है इसके जड़ में जाने की भी हमें जरुरत नहीं लेकिन सच्चाई बताने के लिए म्यांमार के राष्ट्रपति ने विश्व के सबसे बड़े इस्लामिक संगठन जो सउदी अरब में स्थित है .ओर्गनिजेशन ऑफ़ इस्लामिक कोपरेशन यानि ओ आई सी के प्रतिनिधिमंडल को आमंत्रित किया है . एक जिद्दी और आपातकाल चला रहे राष्ट्रपति थिन सीन ने इतनी उदारता इसलिए नहीं दिखाई है कि वे आपातकाल के अपने फैसले को जायज ठहराना चाहते हैं , बल्कि उन्होंने दुनिया के सामने यह हकीकत जताने के लिए ओ आई सी को बुलाया है कि म्यांमार की हिंसा में कोई एक पक्षीय हिंसा नहीं है बल्कि बराबर के जिम्मेवार दोनों ओर से हैं इतना ही नहीं दंगा प्रभावित इलाको में मुस्लिम बाहुल्य राष्ट्र टर्की के विदेश मंत्री को घुमाया गया और सरकार ने ही दुनिया को सच्चाई बताने का आग्रह किया . गौरतलब है कि रोहिंग्या मुसलमान बर्मा में अवैध रूप से घुसपैठ किये लोग हैं यह म्यांमार की सरकार भी मानती है .
म्यांमार का यह सन्दर्भ इसलिए जाहिर करना जरुरी था क्योंकि रांची और जमशेदपुर की सडको पर जिन लोगो ने म्यांमार के मुद्दे पर उत्पात मचाया वे जाने कि म्यांमार में आखिर मामला क्या है . अगर मामला है भी तो क्या इसके लिए हिंदुस्तान में अपने ही घर के लोगो को मारपीट करना तोड़फोड़ करना जायज है सिर्फ इसलिए कि वे दूसरे धर्म के हैं . आफत आएगी तो क्या म्यांमार के रोहिंग्या उनकी मदद करेंगे .जैसा कि रांची में उत्पात मचाते समय दो मुस्लिम बच्चो को अपनी हिफाजत में लेकर एक सिख ने घर तक भेजवाया .
अब इस घटना पर मुस्लिम समुदाय के बुद्धिजीवी और धर्माधिकारी अखबारों में बयान देकर अपना पिंड छुड़ा लेते हैं कि चन्द शरारती तत्वों के कारण ऐसा हुआ . लेकिन इसके लिए ना कभी सड़क पर उतर कर ऐसे तत्वों का विरोध करते हैं ना सदभाव बनाने के लिए . हिम्मत तो दिखाई पकिस्तान के एक अटोर्नी जनरल ने . उन्होंने पश्चाताप के लिए अमृतसर में लोगो के जूते साफ़ किये . इसके कारण उनकी नौकरी भी जाती रही लेकिन अपने यहाँ के रहनुमा अखबारी बयान से आगे नहीं बढ़ते . बाकी समय तो नेतृत्व करने का दंभ भरते हैं लेकिन एन मौके पर दुबक जाते हैं . और ऐसी हिंसा ऐसे ही रहनुमाओ के तटस्थ रहने का कारण होता है . और वह भी कम अपराध नहीं जो तटस्थ रह जाता है .
दुनिया में जो हो रहा है उससे हमारा सरोकार होना लाजिमी है लेकिन बिना विवेक के उसपर एक्शन लेना मुर्खता है . दिक्कत तो यह है कि मुस्लिमो के अधिकांश रहनुमा हर चीज को या तो वोट की नजर से देखते हैं या धार्मिक नजर से . इसलिए उनकी जुबान भी उसी हिसाब से निकलती है . सूरत ब्लास्ट में आरोपी रांची का एक बाशिंदा दानिश गिरफ्तार हुआ तो उसने मंजर इमाम नामक अपने साथी का नाम भी बताया . पुलिस मंजर को आजतक गिरफ्तार नहीं कर पाई है . कारण यह है कि घरवाले मोहल्लेवाले पुलिस को खदेड़ देते है . जाहिर है इन्हें ना देश की पुलिस पर ना अदालत पर ना दानिश जैसे इनके ही दोस्तों पर भरोसा है . इन्हें समझाने के लिए कौम के बुद्धिजीवी सामने नहीं आते जिससे दूसरे पक्ष का ऐश्वास बढ़ता है .
बहरहाल तफसील में ना जाकर एक लाइन में यह कहा जाये कि म्यांमार उर्फ़ बर्मा में जो हुआ उसके लिए रांची और जमशेदपुर में आतंक खड़ा करना निहायत ही बेतुका बचकाना और अपराधिक हरकत है , और इसका विरोध बुद्धिजीवी सड़क पर नहीं करे यह और भी खतरनाक .
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यह महज संयोग है कि रांची में जिस समय सड़को पर म्यांमार के मुद्दे पर आतंक मचाया जा रहा था ठीक उसी समय अमृतसर और दिल्ली में पाकिस्तान से दो सौ हिन्दू परिवार भागकर शरण लेने के लिए भारत पहुचे थे . बराबर की टीस दोनों तरफ थी लेकिन अधिक कसक तो पकिस्तान से आये शर्णार्थियो के लिए होगी क्योंकि पैंसठ साल पहले पकिस्तान और भारत एक ही थे . खून का सम्बन्ध है , ऐसे में पाकिस्तानी शरणार्थियो के प्रति दर्द होना स्वाभाविक ही नहीं लाजिमी भी है . यह दर्द सड़क पर नहीं उतरा दिलो में ही लोगो ने जज्बे को जब्त कर लिया . लेकिन म्यांमार से हमारा कोई सीधा संबंद नहीं है . वहां मौजूद रोहिंग्या मुसलमान आखिर कैसे मुसलमान हैं अधिक लोगो को पता तक नहीं . लेकिन उत्पात मचाना हो तो धर्म का हौव्वा खड़ा कर दो . जिस म्यांमार को लेकर रांची की सडको पर हंगामा हुआ उस म्यांमार की स्थिति जानना जरुरी है
म्यामार में जुन महीने से ही आपातकाल लागू है , मिलिट्री का शासन है , म्यामार में बौद्ध धर्मावलम्बियों का बहुमत है . बौद्ध एक ऐसा समुदाय है जिसके धर्म में शुरुआत होती है अहिंसा से और अंत होता है अहिंसा से . शायद जैनियों के बाद सबसे अहिंसक समुदाय बौद्ध को माना जाता है . वहां चल रहे जातीय हिंसा का कारण क्या है इसके जड़ में जाने की भी हमें जरुरत नहीं लेकिन सच्चाई बताने के लिए म्यांमार के राष्ट्रपति ने विश्व के सबसे बड़े इस्लामिक संगठन जो सउदी अरब में स्थित है .ओर्गनिजेशन ऑफ़ इस्लामिक कोपरेशन यानि ओ आई सी के प्रतिनिधिमंडल को आमंत्रित किया है . एक जिद्दी और आपातकाल चला रहे राष्ट्रपति थिन सीन ने इतनी उदारता इसलिए नहीं दिखाई है कि वे आपातकाल के अपने फैसले को जायज ठहराना चाहते हैं , बल्कि उन्होंने दुनिया के सामने यह हकीकत जताने के लिए ओ आई सी को बुलाया है कि म्यांमार की हिंसा में कोई एक पक्षीय हिंसा नहीं है बल्कि बराबर के जिम्मेवार दोनों ओर से हैं इतना ही नहीं दंगा प्रभावित इलाको में मुस्लिम बाहुल्य राष्ट्र टर्की के विदेश मंत्री को घुमाया गया और सरकार ने ही दुनिया को सच्चाई बताने का आग्रह किया . गौरतलब है कि रोहिंग्या मुसलमान बर्मा में अवैध रूप से घुसपैठ किये लोग हैं यह म्यांमार की सरकार भी मानती है .
म्यांमार का यह सन्दर्भ इसलिए जाहिर करना जरुरी था क्योंकि रांची और जमशेदपुर की सडको पर जिन लोगो ने म्यांमार के मुद्दे पर उत्पात मचाया वे जाने कि म्यांमार में आखिर मामला क्या है . अगर मामला है भी तो क्या इसके लिए हिंदुस्तान में अपने ही घर के लोगो को मारपीट करना तोड़फोड़ करना जायज है सिर्फ इसलिए कि वे दूसरे धर्म के हैं . आफत आएगी तो क्या म्यांमार के रोहिंग्या उनकी मदद करेंगे .जैसा कि रांची में उत्पात मचाते समय दो मुस्लिम बच्चो को अपनी हिफाजत में लेकर एक सिख ने घर तक भेजवाया .
अब इस घटना पर मुस्लिम समुदाय के बुद्धिजीवी और धर्माधिकारी अखबारों में बयान देकर अपना पिंड छुड़ा लेते हैं कि चन्द शरारती तत्वों के कारण ऐसा हुआ . लेकिन इसके लिए ना कभी सड़क पर उतर कर ऐसे तत्वों का विरोध करते हैं ना सदभाव बनाने के लिए . हिम्मत तो दिखाई पकिस्तान के एक अटोर्नी जनरल ने . उन्होंने पश्चाताप के लिए अमृतसर में लोगो के जूते साफ़ किये . इसके कारण उनकी नौकरी भी जाती रही लेकिन अपने यहाँ के रहनुमा अखबारी बयान से आगे नहीं बढ़ते . बाकी समय तो नेतृत्व करने का दंभ भरते हैं लेकिन एन मौके पर दुबक जाते हैं . और ऐसी हिंसा ऐसे ही रहनुमाओ के तटस्थ रहने का कारण होता है . और वह भी कम अपराध नहीं जो तटस्थ रह जाता है .
दुनिया में जो हो रहा है उससे हमारा सरोकार होना लाजिमी है लेकिन बिना विवेक के उसपर एक्शन लेना मुर्खता है . दिक्कत तो यह है कि मुस्लिमो के अधिकांश रहनुमा हर चीज को या तो वोट की नजर से देखते हैं या धार्मिक नजर से . इसलिए उनकी जुबान भी उसी हिसाब से निकलती है . सूरत ब्लास्ट में आरोपी रांची का एक बाशिंदा दानिश गिरफ्तार हुआ तो उसने मंजर इमाम नामक अपने साथी का नाम भी बताया . पुलिस मंजर को आजतक गिरफ्तार नहीं कर पाई है . कारण यह है कि घरवाले मोहल्लेवाले पुलिस को खदेड़ देते है . जाहिर है इन्हें ना देश की पुलिस पर ना अदालत पर ना दानिश जैसे इनके ही दोस्तों पर भरोसा है . इन्हें समझाने के लिए कौम के बुद्धिजीवी सामने नहीं आते जिससे दूसरे पक्ष का ऐश्वास बढ़ता है .
बहरहाल तफसील में ना जाकर एक लाइन में यह कहा जाये कि म्यांमार उर्फ़ बर्मा में जो हुआ उसके लिए रांची और जमशेदपुर में आतंक खड़ा करना निहायत ही बेतुका बचकाना और अपराधिक हरकत है , और इसका विरोध बुद्धिजीवी सड़क पर नहीं करे यह और भी खतरनाक .
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