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Thursday, September 18, 2014

एक कदम आगे चा ...चा चा , दो कदम पीछे चा चा चा .

एक कदम आगे चा ...चा चा ,  दो कदम पीछे चा चा चा ....

      सन 2003 की जुलाई महीने में हैदराबाद में एक कार्यक्रम में भाग लेने गया था . तब चंद्रबाबू नायडू आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री थे . उनकी एक सभा में भाग लेने गया था . नायडू ने तेलुगु में भाषण दिया तो वहां के साथी से पूछा कि आखिर लोग इनके भाषण पर इतने भाव विभोर क्यों हैं ?. पत्रकार मित्र ने कहा कि नायडू कह रहे हैं कि कई वायदों को वे पूरा नहीं कर सके हैं इसलिए लोगो से अपनी शर्मिंदगी जाहिर कर रहे थे . तफसील में मैंने पूछा तो पत्रकार मित्र ने नायडू के वायदों के  पूरे आंकड़े बताये . नायडू ने तीन हजार वायदे किये जिसमे बाईस सौ पर अमल हो गया , पांच सौ पर काम चल रहा है और तीन सौ पर काम होना बाकी है .  मै एक झारखंडी शासन का भुक्तभोगी तब हैरत में पड़ गया था कि क्या सचमुच इतने बकाया वायदों पर शर्म से डूबा जा सकता है ?.
     तब झारखण्ड महज तीन साल का नवजात था . लगता था जल्दी ही झारखंडी नागरिक जापान से अपनी तुलना कराएँगे क्योंकि हमें अपनी आर्थिक समृद्धि , सामाजिक संस्कारों और राजनीतिक भोलापन पर बेहिसाब गर्व था . इसलिए नायडू की स्वीकोरोक्ति  महज एक साफगोई और गर्वोक्ति  के अलावा कुछ नहीं लगा . आज बारह साल बाद झारखण्ड की बेशर्म राजनीति . सामाजिक विखंडन ,आर्थिक अराजकता और अंधकारमय भविष्य को देखता हूँ तो लगता है कि नायडू जैसा व्यक्तित्व झारखण्ड के लिए एक चमत्कारी नेता साबित होते .अकर्मण्य मंत्रियो , विधायको की फ़ौज , सामाजिक समरसता को तोड़ने को डटे संगठन , और अनियंत्रित नौकरशाह झारखण्ड को पाताल तक पहुचाने को आपस में ही लड़  रहे हैं . झारखण्ड आन्दोलन के दौरान एक नारा लगता था " कैसे लोगे झारखण्ड ," जवाब में उदघोष होता था ,' लड के लेंगे झारखण्ड " . झारखण्ड तो ले लिया लेकिन उसी झारखण्ड को अपने स्वार्थ , फायदा और अपनी सम्पन्नता बढाने के लिए लोगो ने लड़ाई का अखाडा बना दिया है . और झारखण्ड को हथियाने के लिए भ्रष्टाचार के कीचड में वाराह क्रीडा कर रहे हैं . दोष केवल नेताओ को नहीं दिया जा सकता , यह परमुखापेक्षी रवैया होगा .  यहाँ के नौकरशाह , एन जी ओ , व्यापारी व्यवसायी , बुद्धिजीवी जिसमे पत्रकार भी शामिल हैं , शिक्षक और आम जनता भी बराबर के हिस्सेदार हैं . बाहरी  निवेशक झारखण्ड से भाग रहे हैं .किसी को कोई चिंता नहीं . सरकार अखबार में अपने बयानों और फोटो छपवाने में ही मगन है . पांच साल पहले तक दो लाख करोड़ का एम् ओ यु हुआ था .इसका पचीस फीसदी एम् ओ यु भी जमीन पर उतरता  तो झारखण्ड जापान तो नहीं लेकिन हिन्दुस्तान का सबसे प्रबल सम्भावना वाला राज्य जरूर बन जाता .  
 अखबारों में छपने वाली घोषणाओ की हकीक़त अगर जनता जान जाये तो शायद अख़बार पढना भी छोड़ दे . जनता के मानस में अख़बार की विश्वसनीयता अभी भी बनी हुई है . दो रूपये खर्च कर वह घंटे भर समय अख़बार पढने में लगाता है . बड़े ही अदब से जनता को बताना चाहता हूँ कि झारखण्ड में घोषनाये कैसे होती है ..झारखण्ड के नेताओ को छपास रोग है . पत्रकार उनके आसपास मंडराते रहते हैं . पत्रकार जनता की मुसीबतों पर चर्चा करते हैं और ठीक उसी समय नेता मंत्री बिना आगा पीछा देखे घोषणा कर देता है . घोषणा अख़बार में छप जाती है और लोगो की उम्मीदे बढ़ जाती है . लेकिन सच्चाई यह है कि इन घोषणाओ के पीछे ना कोई योजना होती है ना ब्लूप्रिंट ना कोई आधिकारिक चर्चा और ना ही नीयत .  किसी दिन खबर  छपी कि रांची में मोनो रेल की स्थापना की जाएगी . नेता ,नौकरशाह  और जनता खबर पढ़कर गदगद होते रहे .नेता अपना नाम देखकर खुश हो गया , नौकरशाह अपनी " दूरदर्शिता " पर इठलाता रहा और जनता मोनो रेल में चढ़ने की चहक से उत्साहित होता रहा . लिख लीजिये ...यह घोषणा झारखण्ड के सन्दर्भ में तारे तोड़कर लाने जैसा है . आठ साल में अस्सी किलोमीटर का रिंग रोड बनाने में सरकार कुथने लगी है वह मोनोरेल की बात कहकर तीन करोड़ लोगो के साथ अभद्र मजाक नहीं कर रही है तो क्या ? . लेकिन घोषनाये करनी है तो कर दिया ..अपनी अंटी थोड़े खुल जाएगी  .. जनता सपने देखे नेता सुख  भोगे . 
   चेन्नई में मेरा भतीजा छः  साल पहले इंजीनियरिंग की पढाई  करने गया था . उसके सहपाठी उसे हाथोहाथ लेते थे क्योंकि उन्हें पता था कि वह महेंद्र सिंह धोनी के शहर और राज्य से आया है . लेकिन धोनी की महिमा पर झारखण्ड के नेताओ की कारगुजारिया भारी पड़ने लगी . लोग कहने लगे धोनी नहीं कोड़ा के प्रदेश से आया है .थोड़े ही समय में भतीजा अपने प्रति अपने सहपाठियों के बदले बर्ताव से हतप्रभ रह गया और यहाँ की व्यवस्था को कोसने लगा  . झारखण्ड के बारे में थोड़ी जानकारी रखने वाला जब पूछता है कि आपके कितने पूर्व मंत्री और मुख्यमंत्री जेल में हैं  ?, कितनी हिचक कितने संकोच और कितने शर्म से हम बताते हैं कि नहीं इतने नहीं इतने हैं ... 
  बहरहाल , बात घोषणाओ की हो रही थी .घोषणाओ का भी वर्गीकरण होगा . एक तो घोषणा किसने किया ..मुख्यमंत्री ने , मंत्री ने जनप्रतिनिधि ने या नौकरशाह ने . ? वर्गीकरण का दूसरा हिस्सा .. घोषणा वास्तव में जनहित का है या तोते उडाने वाला ..अगला हिस्सा ..घोषणा योजना के तहत है जरुरत के तहत ..गौर करेंगे जरुरत असीमित होते हैं ...योजना के लिए कोई ब्लू प्रिंट है ? योजना के लिए राशि केंद्र दे रहा है या राज्य सरकार को ही खर्चा करना है , संवेदक कौन है ,सलाहकार एजेंसी कौन है वगैरह वगैरह ...शर्ते और औपचारिकताये पूरी करते करते साल बीत जता है और योजना राशि भांड में चली जाती है . झारखण्ड के साथ जन्मे छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड के राजधानी को देखने से यही लगता है कि हमारे पास दिखाने को ना सड़क है ना भवन ना इन्फ्रास्ट्रक्चर . राची के ह्रदय स्थल  पर रेंगती गाड़िया देखकर आपको लगेगा किसी ख्यात तीर्थस्थल की गन्दी और संकरी सडको पर चल रहे हैं . लोग कहते हैं झारखण्ड के लिए लम्बी लड़ाई लड़ी गयी . लेकिन लगता है लड़ाई और लम्बी चलनी चाहिए थी . जब हम मानसिक और आर्थिक तौर पर परिपक्व हो जाते तब अलग राज्य बनता .
      2003 में नायडू के अफ़सोस पर मैंने मन ही मन उपहास किया था लेकिन आज लगता है कि हमारे भाग्य विधाता पिछले दस सालो से हमारा उपहास कर रहे हैं और हम कुंठित और नपुंसक बनकर परिहास का केंद्र बने हुए हैं . घोषणाओ को सुनकर , देखकर और पढ़कर लगता है कि हमने रफ़्तार पकड़ी है लेकिन हकीकत जानते ही लगता है पीछे से किसी ने खीच लिया है . एक कदम आगे बढाकर दो कदम पीछे हटने की कसक कब तक हम सहेंगे.???

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